Monday, December 20, 2010

आड़ी-तिरछी रेखाएं













मैं जब छोटी थी ना
तो अक्सर .......बड़े शौक से 
कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें
बनाती रहती थी 
घर की दीवारों पर
और माँ..... हमेशा की तरह...... डांट देती थी
"मत कर बेटा ,दीवारें..... खराब हो जाएँगी!!"
मैं अब....... समझदार हो गयी हूँ  |

पर ऐ खुदा
तू क्या..... अभी तक नादान है
जो आड़ी-तिरछी रेखाएं
गढ़ता रहता है
हम सब की...... हथेलिओं पर
कभी कटी कभी पूरी 
कभी आधी-अधूरी
क्या तेरी माँ........ डांटती नहीं तुझे
"मत कर बेटा,जिंदगियां .... ख़राब हो जाएँगी.....!!"


~Saumya

Tuesday, December 14, 2010

बस ऐसे ही प्यार करो!















आज आसमां में उड़ने की ख्वाहिश मत करो
बावले मन को आज अपने संग बैठाओ
मत डालो पलकों पर आज ख़्वाबों के बोझ
वरन,जो कुछ है तुम्हारे आस-पास ,आज उसे ही लाड़ करो
अब तक की जीवन-निधि है जो,आज उसे ही प्यार करो ......

मत जलाओ आज तुम घर में दीवा
रौशनी का मत आज उन्माद करो 
अँधेरे गलियारों में तनिक झाँक कर देखो
आज उन्हें ही टटोलने का प्रयास करो !
जो स्याह है,है अन्धकार में ,आज उसे भी प्यार करो
बस ऐसे ही प्यार करो!

मत मांगो आज दुआ कोई ,मत टेको मन्दिर में माथा
मत चढाओ फूलों के दस्ते ,मत गाओ कोई गीत-गाथा
अपितु, उस दाता के लिए,
आखें आज कुछ नम करो
आज उसे भी प्यार करो,
बस ऐसे ही प्यार करो!

रंगों की पुड़िया आज मत खंगोलो
मत करो कामना किसी इन्द्रधनुष की
वरन जो वर्णहीन है, रंगहीन है
अरुचिकर है ,अप्रीतिकर है    
आज उसे ही प्यार करो
बस ऐसे ही प्यार करो

मत लिखो आज कुछ,मत कहो आज कुछ
बस यूँही चुपचाप रहो,
ज़िन्दगी के आँचल में आज ,
इक भीनी सी मुस्कान धरो 
जो जैसा है आज जमाने में
सिर्फ आज
उसे वैसे ही प्यार करो
बस ऐसे ही प्यार करो!

ना 'कल' पर अवसाद करो
ना 'कल' पर उम्मीद धरो
सच्चा झूठा अच्छा या  बुरा 
जो जैसा है आज जमाने में
उसे वैसे ही प्यार करो
बस ऐसे ही प्यार करो!
बस ऐसे ही प्यार करो!.......

~Saumya

Tuesday, October 12, 2010

टूटे ख़्वाब....


हर शाम छत पर
जब अश्कों की आँच में
टूटे ख़्वाबों को
जलाती है वो 
तो धधकने लगती है
ख्वाहिशों की लौ!

सिहरती हवाओं का इक हुजूम
उड़ा ले जाता है संग
चंद अंगारों को
और फेंक देता है
किसी आसमां के सीने पर!

बच्चे खुश होते हैं
उन 'तारों' को देखकर
मुसाफिरों को मंजिल मिल जाती है
स्याह 'रात' जगमगा उठती है
और लोग
उन दम तोड़ते सुलगते अरमानों से भी
मन्नते मांग लेते हैं !

किसी को किसी के अंधियारों से
क्या फर्क पड़ता है ..............!!

~Saumya

Sunday, September 19, 2010

ए खुदा ,तू खैरियत से तो है?












तेरे  नाम  पर  इक  मस्जिद  गिरती  है
तेरे  नाम  पर  इक  मन्दिर  बनता  है
तेरे  नाम  पर  ऐ  ज़िन्दगी  के दाता  
मौत  का  बर्बर  खेल  चलता  है |

तू  रिश्ते  जोड़ता  है
लोग  दिल  तोड़  देते  हैं
तू  प्यार  सिखाता  है
लोग  नफरत  घोल  देते  हैं |

तू  निराकार  है
तेरे  अक्स  पर  झगडे  होते  हैं
तू  पालनहार  है
लोग  तुझे  ही  तोल  देते  हैं |

तेरे  नाम  पर  बाती  जलती  है
तेरे  नाम  पर  घाटी  सुलगती  है
तेरे  नाम  पर  बनी  रिवायतों  पर
अक्सर  ही  रूह  बिलखती  है |

दर्द  होता  होगा  तुम्हें ,देखकर  यह  सब
आँखें  नम  हो  जाती  होंगी  अक्सर  तुम्हारी
ए खुदा  ,तू  खैरियत  से  तो  है ?
तेरी सलामती की दुआ अब मैं किस्से मांगूँ?

~Saumya

Friday, August 13, 2010

क्या गलत है?


















क्या गलत है जो बिरजू घर-घर भीख मांगता है.
जब भूख लगती है ,तो  दिल बिलखता  है.                                       
महंगाई की मार में, सिर्फ बचपन बिकता है
क्या गलत है जो वो  मासूम ,यूँ दर-दर फिरता है |

क्या गलत है जो अब्दुल चोरी करता है
गरीबी की आग में ईमान झुलसता है
बहन हुई है तीस की ,बाप दहेज़ के लिए फिरता है
क्या गलत है जो अब्दुल चोरी करता है |

क्या गलत है जो कश्मीर में बच्चा ,बन्दूक उठाता है
तो क्या हुआ,कि गोलियों की आवाज़ से वो डर-डर जाता है.
वो नन्हा परिंदा अपने घर में आज़ादी चाहता है
क्या गलत है जो उसकी आँखों में ,खून उतर आता है |

क्या गलत है जो अफज़ल आतंक फैलाता है
मासूम इक दिल पत्थर बन जाता है.
है कौन वो जो उसकी 'आत्मा' मरवाता है
अफज़ल की क्या गलती , वो 'आतंक' फैलाता है |

क्या गलत है कि इक माँ ,बेटी का गला दबाती है
जमाने के दस्तूरों पर,उसकी चिता जलाती है
समाज उन्हें वैसे भी जीने ना देगा
बोलो,क्या गलत है.........................

गलत ये नहीं हैं
गलत वो हैं जो सत्ता पाने के बाद,कर्त्तव्य भूल जाते हैं
गलत वो हैं जो सिर्फ,अपना स्वार्थ साधते हैं|
गलत वो हैं जो निर्दोषों का शोषण करते हैं,
गलत वो हैं जो कुरीतियों का पोषण करते हैं|
गलत कहीं न कहीं,हालात भी हैं
गलत थोड़े हम, थोड़े आप भी हैं!!!

~Saumya

Monday, August 2, 2010

हो सकता है...

















हो  सकता  है
जब  कभी  तुम  बेहद  उदास  हो
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे  पास
मेरे  कन्धों  पर , सर  रखकर  रोने  को |
हो सकता है 
जब  कभी  अकेले  में  तुम  सिसक  रही हो
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे  पास
तुम्हारे आंसूं  पोछने  को |
हो  सकता  है
अगर  कभी  तुम्हे  चोट  लगे
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे पास
तुम्हारे  ज़ख्म  पर  प्यार  से  फूंकने  को |
हो  सकता  है
जब  कभी  तुम  परेशान  हो
मैं  ना  रहूँ तुम्हारे पास
तुम्हे  गले  से  छपटाकर
’सब  ठीक  हो  जाएगा ’ कहने  को |
हो  सकता  है
जब  कभी  तुम  हार  कर  टूटने  लगो
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे  पास
तुम्हे  हौसला  देने  को |
हो  सकता  है
जब  कभी  अकेले  में  तुम  डर  जाओ
मैं  ना  रहूँ  तुम्हारे  पास
तुम्हारा  हाथ  पकड़ने  को|
हो सकता है.................

तो  कभी मायूस  मत  होना 
एहसास  कर  लेना
मेरे  होने  का
दोहरा  लेना
मेरी  कही  हुई  बीती  बातें
समझा  लेना  खुद  को
जैसे  मैं  समझाती  थी  तुम्हे
लड़ना  अपनी  कमजोरियों  से
और  फिर  छू लेना  आसमां  को
जीत  लेना  जहां  को
याद  रखना -
दर्द  तुम्हे  होता  है ,तो  आह  मेरी  निकलती  है ,
तुम्हारी  इक  मुस्कान  पर ,ख़ुशी  मेरी  छलकती  है .

याद  रखोगी  ना ?
मैं  तुम्हारे  ’पास ’ हर  वक़्त  ना  सही
तुम्हारे  ’साथ ’ हमेशा  हूँ !

~Saumya

Monday, July 19, 2010

तुम्ही तो हो!

















जैसे पंखुड़ियों के आँचल से लिपटी
कोई ओस की बूँद
जैसे दिल के तार छेड़ती
कोई मीठी सी धुन |
जैसे चेहरे पर खिली
मासूम सी हँसी
जैसे गोकुल के गलियारों में
कृष्णा की बंसी |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे बुझते दिए को बचाती
कोमल हथेलियाँ
जैसे  दूर किसी गाँव में
सरसों की फलियाँ |
जैसे गोधुली बेला में
वो पहला सितारा
जैसे झरनों में झिलमिलाती
कोई चमकती धारा |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे बिन मांगे पूरी हुई
कोई मनचाही मुराद
जैसे सब खोने के बाद भी
एक छोटी सी आस |
जैसे सुबह सुबह देखा
कोई सुन्दर सपना
जैसे परायों की भीड़ में
सिर्फ कोई अपना |
हाँ,तुम्ही तो हो!  

जैसे सांसों में घुलती 
हरसिंगार की महक
जैसे दिनों बाद आँगन में
पाखियों की चहक |
जैसे ठंडी ठंडी सी बयार 
और गुलाब के बगीचे 
जैसे नदियों का कल-कल
और सावन की झींसें |
हाँ,तुम्ही तो हो!  

जैसे छत पर बैठा 
परिंदों का जोड़ा 
जैसे घर की देहलीज़ पर 
तितलियों का डेरा |
जैसे आँखों से छलकते
ख़ुशी के आंसू 
जैसे मंद-मंद- मुस्कुराती 
बासंती ऋतू |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे चुनिन्दा शब्दों से गुथी 
कोई प्यारी-सी कविता 
जैसे रौशनी बिखेरती 
निश्छल सविता | 
जैसे खुदा का भेजा 
कोई अनमोल फरिश्ता 
खुशियाँ बाँटता जो 
आहिस्ता-आहिस्ता |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे हाथों पर लिखी
भाग्य की लकीर
जैसे दुआएं देता
कोई अनजाना फकीर |
जैसे कड़ी धूप के बाद 
सुहावनी सी शाम
जैसे ज़िन्दगी  का ही
कोई दूसरा नाम |
हाँ,तुम्ही तो हो!
सिर्फ तुम्ही तो हो! 

(for my dearest siblings)



गोधुली बेला=when day and night meet just after the sunset,पाखियों=birds,सविता=sun

Wednesday, July 7, 2010

चूड़ियां

 

बाज़ार में कल हरी चूड़ियां देख 
कैसी चमक उठीं थीं मेरी 'आँखें'

किसी ने खो दीं थीं ,बनाते वक़्त 

~Saumya

Friday, July 2, 2010

'जात'


  











बाँध कर रखो ,मासूम मन को ,
और जला कर ख़ाक कर दो पतंगों के ढेर .

हवाएं भी अब रस्ता,'जात' पूछकर देती हैं.

                                                                                                        
~Saumya

Wednesday, June 23, 2010

इस बार जब सावन...

 


















इस बार जब सावन चुपके से
मेरी खिड़की पर दस्तक देगा
तो  अँधेरे कमरों से निकल
मैं बावली सी दौड़कर
पहुँच जाउंगी छत पर |

भीगने दूँगी कुम्हलाई रूह को
बाहर से भीतर तक
भीतर से बाहर तक |

पथराई आँखों को
नम होने दूंगी
पराये अश्कों से ही सही |

इन्द्रधनुष से कुछ रंग उधार लेकर,
रंग लूँगी 
बेरंग हुए सपनों को |

थकी हुई साँसों को
फिर ताज़ा कर लूँगी
धरती की सौंधी  महक से |

बरखा की रिमझिम को धीमे से गुनगुनाउंगी,
हवाओं की ओढनी ले,हौले से झूम जाउंगी,
और फिर खुशदिल होकर
जब दोनों हाथों को आगे फैलाउंगी
तो चंद बूँदें
मेरी हथेलियों पर आकर ठहर जायेंगी
और हर बार की तरह इस बार भी
कुछ नया लिखेंगी
कुछ अलग  ....
इस बारी ,शायद कुछ अच्छा ! :)

~Saumya

Sunday, June 20, 2010

बारिश होने को है...














वादियाँ सजदे में हैं ,
आफताब परदे में है,
पंछियों में हलचल सी है,
फिजायें भी मलमल सी हैं.
कि दूर बादलों के गाँव से
कोई आने को है |

रिमझिम-रिमझिम,
कुछ मनचली बूँदें ,
रिमझिम-रिमझिम,
कुछ सपनों की फुहारें,
कि गुलशन-ए -ज़िन्दगी 
फिर मुस्कुराने को है ...

दूर बादलों के गाँव से
कोई आने को है ...

~Saumya.

Monday, June 7, 2010

ज़िन्दगी...


















'दिल' और 'दिमाग' में उलझनें बढ़ गयीं थीं,
साँसों की डोर में भी गिरहें पड़ गयीं थीं
आज बैठकर सुलझाया है सब कुछ
ऐ ज़िन्दगी तू हमें रास आने लगी है!

माथे पर कुछ सिलवटें बेहद फिजूल थीं,
पलकों की छाँव में सिर्फ यादों की धूल थी 
आज बैठकर मिटाया है सब कुछ
ऐ ज़िन्दगी तू हमें लुभाने लगी है!

हाथ की लकीरों पर वक़्त की खरोंचे थीं,
लबों पर मुसकुराहट भी ज़ख्म सरीखी थीं 
आज 'उम्मीद' का मरहम लगाया है सब पर
ऐ ज़िन्दगी तू हमें अपनाने लगी है!

ऐ ज़िन्दगी तू हमें रास आने लगी है!

~Saumya

गिरहें=knot,खरोंचे=scratches


Friday, June 4, 2010

गम



तारों संग कल गुफ्तगू में हमने
कुछ एक गम जाहिर किये थे

सुना है पूरी रात बारिश हुई है| 

~Saumya 


गुफ्तगू=conversation,जाहिर=express


Monday, March 29, 2010

इस पार उस पार.....














मेरे मिट्टी के खिलौनों से 
उस पार की मिट्टी की भी
महक आती है
तो क्या तोड़ दोगे तुम
मेरे सारे खिलौने ?

मेरी  पतंग
जब  कभी  उड़ कर
उस पार जायेगी 
और क्षितिज के शिखर को
छूना चाहेगी
तो क्या फाड़  दोगे तुम
मेरे रंगीन सपनों  को  ? 
या फिर काट दोगे-
मेरे ही हाथ?

कुछ बोलो......
क्या करोगे तुम?

उस पार से जब  कभी पंछी
मेरी बगिया में
गीत गाने आयेंगे
तो क्या रोक दोगे तुम
उनकी उड़ान ?
या उजाड़ दोगे
मेरी ही बगिया?

जब कभी उस पार के
गुलाबों की खुशबू
मेरी साँसों में
घुल जाया करेगी 
तो क्या थाम लोगे तुम
चंचल हवाओं को ?
या तोड़ दोगे
मेरी साँसों की
नाजुक सी डोर?

उस पार से चल कर
चंद ख्वाब
जब मेरी पलकों में पनाह लेने आयेंगे
तो क्या रोक दोगे तुम
उनका रास्ता?
या छीन लोगे मुझसे
मेरी ही आँखें?

कुछ बोलो......
क्या करोगे तुम?
कुछ तो बोलो .....

इस पार
उस पार 
उस पार
इस पार
दीवारें खड़ी करने के लिए
और कितने घर उजाड़ोगे तुम?
कितनों की मांगों का सिन्दूर मिटाओगे ?
कितनों की आँखों का दीप  बुझाओगे ?
सुर्ख लाल ईटों पर
और कितने खून चढाओगे  तुम ?
बोलो....
कुछ तो बोलो ....

इन  दीवारों को लम्बी करने के लिए
और कितनी ईंट जुटाओगे  तुम?
जो कम पड़ी, तो क्या दिलों को भी  निकाल कर
दीवारों पर चुन्वाओगे तुम?
बोलो .....

'माँ' को टुकडो में बिखेर  दिया तुमने
क्या अब आसमां को भी बंटवाओगे तुम?

कुछ बोलो......
कुछ तो बोलो?

प्रश्न शिथिल है
उत्तर भी
बस एक डर है -
कि ईंटों की गिनती इतनी जियादा ना हो जाए
कि वो अपने ही बोझ  तले ढह  जाएं
और मलबे में दबे
मुझे तुम दिखो
कराहते  हुए .....
पछताते हुए......
सिर्फ तुम ........


~Saumya

Monday, January 11, 2010

सहर

















धुंध का घूंघट उठाती
सांवली सी सहर
इठलाती ,मुस्कुराती,
और बादलों की ओट से झांकता
ठिठुरता,अलसाता सूरज.....|
अंगड़ाईयां लेते झील और पोखर
और उन पर मचलती किरणों संग
अठखेलियाँ करती
वादियों की परछाईयाँ .....|
फूलों से अलंकृत पीरोजी चोली
और गुलाबी हवाओं की रेशमी ओढ़नी में   
सँवरती  वसुंधरा.....
शर्माती,सिहरती .....
खुद में सिमटती जाती ....|
साँसों में जब घुलती
हरसिंगार की महक
तो मानो ज़िन्दगी को जीने की
एक और वजह मिल जाती |
पतझड़ के शुष्क पत्तों से
फिर उभरता संगीत
ठूंठे अमलतास पर
पुनः पाखियों के नव गीत |
सीतकारती बासंती बयार
जब मीठी सी गुनगुनी धुप में
उड़ा ले जाती संग धूलिकणों  को
तो सहसा दीख पड़ती
झुरमुठों से झांकती वल्लरियाँ ,
पत्थरों के अंतराल में अंकुरित 
कोपलों की लड़ियाँ |
और ओस की चंद बूंदों के संग
पंखुड़ियों के आँचल में सहेजी हुईं 
अश्रुओं की तमाम सीपियाँ
कुछ गगन की,कुछ धरा की ,कुछ मेरी
जो बरबस ही छलक आयीं थीं
जीवन को फिर पनपता  देख.............|

~Saumya