अभी थोड़ी देर पहले
दूर बादलों के गाँव से
छोटी-छोटी मनचली
बूंदों की बारात
आई थी मेरे शहर में
पाँवों में घुंघरू थे जो
रिमझिम-रिमझिम बजते थे
सिर पर ओढ़नी थी
मखमली फिजाओं की
रोम-रोम खिला सा था
हर मोती निरा सा था
निमंत्रण भेजा था मैंने परिंदों के हाथ
बूँदें आयीं थीं सज-सँवर के इस बार
अभी थोड़ी देर पहले ………………!
बोगनविलीया की छरहरी
नाज़ुक पंखुड़ियां
भीगी भीगी सी
अभी भी शर्मा रही हैं
हवाओं के तौलिये से हौले हौले
जुल्फें अपनी सुखा रही हैं …...............!
और वो सामने वाला
फुर्तीला …..अमरुद का पेड़
अपनी टहनियां आकाश में
ऐसे लहरा रहा है
मानो वो जो बगल वाली
फूलों की बेला है
उसे ही चुपके चुपके रिझा रहा है ………!
परिंदों की इक टोली
मेरी छत के ऊपर वाले आसमान में
प्रेम राग गा रही है
और तितलियों की इक मण्डली यहाँ नीचे
आहिस्ता आहिस्ता गुनगुना रही है...........!
और वहां दूर वो बेहया
आवारा चाँद का टुकड़ा
बादलों की ओट से कैसे झाँक रहा है
नहा धोकर सुनहरी पोशाक में अपनी
धरा को देख देख इठला रहा है ..................!
थोड़ी सकुचाई सी
थोड़ी इतराई सी
धरती ...की साँसों में ये जो
रूमानियत का इत्र है
तिनका तिनका ये कायनात को
महका रहा है..................................... !
~Saumya
बूंदों की ये बरसात जीवन लाइ है ... नमी की बौछार लाइ है ... सब और हरियाली छाई है ... उत्तम रचना ...
ReplyDeleteसोम्या जी ......क्या बात है... हर पंक्ति बेहद उम्दा है रचना पसंद आई.......आपको शुभकामनाएं..!
ReplyDeleteनिमंत्रण भेजा था मैंने परिंदों के हाथ
ReplyDeleteबूँदें आयीं थीं सज-सँवर के इस बार
अभी थोड़ी देर पहले ………………!
बरखा की बूंदों के संग बहुत मर्मस्पर्शी अहसास....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!!!!!
वाह ... बहुत खूब।
ReplyDeleteAchhi hai!
ReplyDelete@Digamber ji: thanks :)
ReplyDelete@Sanjay ji: thanks a lot :)
@Sangeeta ji: thanyou :)
@Sada ji: thanks :)
@Amit: thanks :)
Lines Pdte pdte 100% wahi feel hua jo real barish ki boondo k sath feel krta hu.awesome saumya.
ReplyDeleteIt takes a great heart to see so many things in as simple phenomena as The Rain...
ReplyDeleteThen again the simplest things are the most amazing ones ...
जीवन एक अनवरत आश्चर्य है .
But one needs a poets eye to see it.
And u have done it beautifully :)
wooooww ......wht should i say yaar ....barish me bheegne ko man tadap sa gya hai ek dam ......sacchi me bahut sunder ......बूंदों की बारात
ReplyDeleteआई थी मेरे शहर में
पाँवों में घुंघरू थे जो
रिमझिम-रिमझिम बजते थे
सिर पर ओढ़नी थी
मखमली फिजाओं की
रोम-रोम खिला सा था
हर मोती निरा सा था
निमंत्रण भेजा था मैंने परिंदों के हाथ
बूँदें आयीं थीं सज-सँवर के इस बार
अभी थोड़ी देर पहले ………
isko padhte hue kai scene yaadon ke aayine me utar gye .....ek baar isi tarah barish me bheegte hue ek geet likha tha " पवन चित्त चोरनी ..मैं पगली सी मोरनी "..कभी शेएर करूंगी
बोगनवलीया क छरहर नाजक पंखुड़यां भीगी भीगी सी अभी भी शमा रही ह हवा क तौलये से हौले हौले जुफ अपनी सुखा रही ह …...
ReplyDeleteAwesome lines.. Bajut hi pyara likha hai aapne.
:-)
@chandan: thanks a lot for the wonderful comment :)
ReplyDelete@vandana: thank you dear :)
बोगनवलीया क छरहर नाजक पंखुड़यां भीगी भीगी सी अभी भी शमा रही ह हवा क तौलये से हौले हौले जुफ अपनी सुखा रही ह …...
ReplyDeleteAwesome lines.. Bajut hi pyara likha hai aapne.
:-)
@Sahityika: thanks a lot :)
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