आज फिर विभावरी की सेज पर,
जब चाँदनी इठला रही थी ,
तभी तारों का एक जमघट
व्योम की परिधि फांदकर ,
बादलों से लड़-झगड़कर,
मेरी खिड़की पर आ बैठा,
और पुकारने लगा,
मानो माँ का कोई झिलमिलाता आँचल,
चार पहर के विरह के बाद,
मुझे आलिंगन में लेने को,
व्याकुल हो रहा हो ।
मैं भी रोज़ की तरह ,
अपनी एकाकिता के कमरे से निकल ,
अम्बर के उस अपरिमित समुच्चय को,
संजो रही थी ,
अपनी भीगी-भीगी सी नम आखों में |
कालिमा के घेरों में लिपटी वह हर एक बिंदु ,
टिम-टिम करती ,सिसकियाँ भर रही थी,
सुलग रही थी ,
अभियन्तर,
और भीतर ,
धधक रही थी,
उदासी परोसते उन गलियारों को
रोशन कर रही थी |
कि तभी टूट कर बिखर गया एक तारा
यकीनन,किसी ने कुछ माँगा होगा |
फिर भी वह विमलाभ-कान्ति,
शांत है ,
निस्पंद है ,
और आंसुओं का बांध टूटता भी है
तो कभी धरा की प्यास बुझाने को,
कभी बरबस ही मन को रिझाने को
ऐसी मूक शहादत
भला कौन यहाँ देता है....
कौन कहाँ देता है......
अभी भी झाँक रहा है,
वो जमघट मेरे आँगन में,
भेद रही हैं उसकी शीतल किरणे,
मेरे अंतरतम को,
मानो अँधेरे बांटने को ,
कोई साथी मिल गया हो......... ~सौम्या
excellent work, aisa lag raha hai, as if i m reading a work frm an expert in this field........continue writing......gud to see u progress.......
ReplyDelete@alok...thnx man...u r always encouraging
ReplyDeletehmmm nice piece:) ...
ReplyDeletethanx ananya
ReplyDeletewaaaw gr88 one ...
ReplyDeletethanks vandana!
ReplyDeletecontinue writing......gud to see u progress....
ReplyDeletethank you sanjay ji!
ReplyDeleteWonderful,superawesome :>:>U rock di btw wat does sahadat mean may I knw di:>:>I luv ur vocabulary so,genius u are!!
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