उगते हुए सूरज में सांझ ला गई,
लो मौत फिर दबे पाँव आ गई।
कभी जवानी में नाकामी के नाम आ गई,
कभी जवानी में नाकामी के नाम आ गई,
कभी त्तन्हायियों में यूँही गुमनाम आ गई,
लो मौत फिर दबे पाँव आ गई।
जिसने आंखों से खुशियों को छलकाया,
उसी के आशियाने में सैलाब ला गयी
लो मौत फिर दबे पाँव आ गई।
सपनों की सेज पर मय्यत सजा गई,
बड़ी बेआबरू हो बेवक़्त ही अंजाम ला गई,
ये मौत फिर दबे पाँव आ गई।
अधूरे वायदों के बोझ तले,
इक बिलखती रूह , रुखसत हो आयी।
माना की मौत आखिरी अफसार है…
पर ज़िन्दगी को भी तो बेनजीर जीने की दरकार है
फिर क्यूँ ज़िन्दगी को हरा ये अहजान ला गई,
ऐसी भी क्या आफत ,की इखतियाम ढा गई,
मौत क्यूँ नंगे पाँव आ गई……।
किसी को निगल,किसी की भूख मिटा गई,
कातिब के दिल-ओ-दिमाग में इज़तिरार ला गई,
आंखों को वो लुटा हुआ मंजर दिखा गई…
मौत फिर दबे पाँव आ गई…......
ये क्यूँ फिर दबे पाँव आ गई……
~ सौम्या
इखतियाम=end ;कातिब =writer ;इज़तिरार =helplessness/agitation
very nice poem and very meaningful.
ReplyDeleteit touched mah heart ..n makes me remind of mah dear uncle whom i hev lost recently....
ReplyDeletenice poem n the emotions r clearly depicted ...
love dat
excellent, great piece.......u r improving a lot.........lovely.....the best part of this is that the "feel" is clearly communicated.......
ReplyDeletenice one dear... bravo ... three cheers...
ReplyDelete:)
thanks a lot to all....
ReplyDeleteu back again with a new poem hmmm...
ReplyDeletenice one, quite touching one...
jst keep goin n keep it up...
Gud work
ReplyDeleteImpressive
thnx shivam
ReplyDeletethnx saurabh
kuch hi kawitaye padi aapki but bahut hi sunder or kafi behtrin... keep it up...
ReplyDeletehindi poetry par aapki poem dekh laga nahi tha ki aap itna sunder likhti hai...
best of luck....weldone..
thank u lucky...got encouraged
ReplyDeleteBohot achcha...
ReplyDeleteKisi muslim dharmik kitaab mein likha hai ke Allah kehte hain ke main manushya ke saamne dheere-dheere prakriti ke saare raaz kholta jaaunga sivay ek ke - maut. Iska rahasya wo kabhi nahi jaan payega.