Friday, July 3, 2009

रात का बटोही...




मढ़िया में रहता,रखवाली महलों की वह करता है,
किसी और की ज़िन्दगी के लिए,साथ मौत लिए फिरता है।
अपने ही प्रतिरूप को सलाम किया करता है,
दफ्तर,दुकान,दहलीज़ पर वह चौकस हुआ फिरता है।
सुनसान राहों पर शूर सा विचरता है,
निशाचर यह,नाम,’पहरेदार’ लिए फिरता है।

कभी बंद तालों को देखता,
कभी अंधियारों को भेदता,
ज़िन्दगी में रौशनी की आस लिए फिरता है,
किवाड़ के खुलने का एहसास लिए फिरता है।
एक गम नही,कुछ गम नही,
पूरी 'रात' लिए फिरता है।
तकदीर कब बदलेगी,
यह सवाल लिए फिरता है।


निशाचर यह,नाम,'पहरेदार'लिए फिरता है,
आखों में सपनों का आगार लिए फिरता है।
सीटी बजाते,लाठी पीटते,
'जागते रहो' का पैगाम लिए फिरता है।
रात का बटोही यह बाट लिए फिरता है,
नव विहान में नव उमंग की दरकार लिए फिरता है।

~सौम्या





8 comments:

  1. lively description of sumone whom we dont really think of.....but still i feel there could ve been a bit more

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  2. meri poem raat abhi baaki hai . se bahut milti hai ..
    nice effort .. bahut acchji hai ..

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  3. heyyyy really nice poem,.,.,.,.,

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  4. well, its sumthing lyk jadu ki jhappi to a watchmen...
    gud effort on poetess part...

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  5. as i said earlier,in response to your message of FB,you are a 'truly gifted poet'.you write from heart..and reach hearts..my good wishes and blessing are with you..ever.
    prashant vasl

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  6. @prashant vasl sir
    thnx a lot sir for ur encouragement n appreciation...I m highly obliged..I wish I can write much better

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  7. this is the theme of which we rarely think abt ..
    n we hardly pay any attention ...
    liked dat ..

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Thankyou for reading...:)