कि आज वक़्त से होड़ लगाने की तमन्ना हुई.
मुस्कुराते-मुस्कुराते ज़ख्मी हो चुके हैं होंठ,
कि आज खुल-कर खिलखिलाने की तमना हुई.
लफ्ज़ भी कतराने लगे हैं अब लबों पर आने से,
कि आज अपनी खामोशी को गुनगुनाने की तमन्ना हुई.
इस कदर डर गयी हूँ हर शख्स से यहाँ पर,
कि आज अपने ही साए को मिटाने की तमन्ना हुई.
संजो रही हैं मेरी आँखें जो सैलाब ज़माने से,
आज ज़माने को उस समंदर में डुबाने की तमन्ना हुई.
हर मोड़ पर मिल जाते हैं अदाकार यहाँ,
कि आज हर चेहरे से नकाब हटाने की तमन्ना हुई.
धधक रहा है शहर खुद की लगाईं आग में,
कि आज राख के बने ढेर को फिर जलाने की तमन्ना हुई.
आजिज़ है मन कुछ उलझे हुए सवालों से,
कि आज खुदा से हर जवाब माँगने की तमन्ना हुई.
कब तलक घुल पाएगी ये मायूसी इस स्याही में,
कि आज अपनी कलम को फिर आजमाने की तमन्ना हुई.
~ सौम्या
bahut khubsurat... behtrin... kafi sunder kawita...
ReplyDeleteकब तलक घुल पाएगी ये मायूसी इस स्याही में,
ReplyDeleteकि आज अपनी कलम को फिर आजमाने की तमन्ना हुई.
ye kavita mujhe apke blog par sabse acchee lagi thi or upar ki lin to bahut hi badiya kahi hai..
maine apko pehle is par comment kiya tha sayad aprovel nahi hua ..nway apke blog par akar bahut accha laga jo poetry pehle nahi padh payye thi aaj padhi ..sach me bahut accha likha hai
thanks lucky
ReplyDeletethanku vandana
yet another remarkable piece
ReplyDelete'tamanna'
ReplyDeletebadhiyaa!!
ReplyDeletebahut khoob saumya every poems of urs so thoughtfull ....
ReplyDeletethanku alok,varakchakshu,maverick and manjeet ji....keep reading...thanks again..
ReplyDeleteIk kasak si uthi dil me ghazal padh kar
ReplyDeleteki haal-e-dil gungunane ki tamanna hui...
aha...nicely said...thank you for the read.....
ReplyDeleteare, ye to pada hi nhi tha.........bahut achha likha h.
ReplyDeleteBetter late than never :P
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