Friday, June 5, 2009

फर्क क्यूँ?

ऐ बनाने वाले बता तेरी दुनिया में फर्क क्यूँ?

कोई हिम सा उच्च है कोई कूप सा गूढ़ क्यूँ?
कोई धरा उर्वर बनी कोई रेगिस्तान क्यूँ?
ऐ बनाने वाले बता तेरी दुनिया में फर्क क्यूँ?

कोई ईंट कंगूरा बनी कोई नींव को भेंट क्यूँ?
किसी को शोहरत मिली कोई अनाम उत्सर्ग क्यूँ?
ऐ बनाने वाले बता ईंट-ईंट में फर्क क्यूँ?

कोई बूँद मोती बनी कोई माटी में संसर्ग क्यूँ?
कोई श्रृंगार की शोभा बनी कोई अस्तित्व-विहीन क्यूँ?
ऐ बनाने वाले बता बूँद-बूँद में फर्क क्यूँ?

कोई पत्थर चाँद बना कोई सड़क पर अभिशप्त क्यूँ?
किसी को पूजा गया किसी को पाँव की गफलत क्यूँ?
ऐ बनाने वाले बता पत्थर-पत्थर में फर्क क्यूँ?

कोई दौलत-मंद यहाँ कोई इतना गरीब क्यूँ?
किसी को मलाई-मेवा कोई कोदई को मजबूर क्यूँ?
ऐ बनाने वाले बता यह अतिवृह्ग फर्क क्यूँ?

कोई यहाँ समृद्ध हुआ किसी की ज़िन्दगी बेरंग क्यूँ?
किसी के सपने सच हुए किसी के हिस्से दर्द क्यूँ?
ऐ बनाने वाले बता तेरी दुनिया में फर्क क्यूँ?


~सौम्या 


3 comments:

Thankyou for reading...:)