है डर मुझे...
कि मतलब भींज़ती इस दुनिया में,
ममता कहीं बिफर ना जाए,
मैं,मेरा मात्र के दंभ में,
सस्मित संतति सिहर ना जाए।
है डर मुझे...
कि अंधों की आलोड़ित दौड़ में,
कोई अपना पीछे छूट ना जाए,
आडम्बर भरी इस होड़ में,
धागा प्रणय का टूट ना जाए।
है डर मुझे...
कि गगन-भेदती इन दीवारों में,
बगिया कोई ठूंठ ना जाए ,
दिल में पड़े कीवाड़ों से,
माता मही सब रूठ ना जाएँ ।
है डर मुझे...
कि निर्बल सिसकती उन आंखों में,
उम्मीद का बाँध टूट ना जाए ,
दारूण वेदना की सलाखों में,
उघरता आक्रोश कहीं फूंट ना जाए।
है डर मुझे...
कि मतलब भींज़ती इस दुनिया में,
ममता कहीं बिफर ना जाए,
मैं,मेरा मात्र के दंभ में,
सस्मित संतति सिहर ना जाए।
है डर मुझे...
कि अंधों की आलोड़ित दौड़ में,
कोई अपना पीछे छूट ना जाए,
आडम्बर भरी इस होड़ में,
धागा प्रणय का टूट ना जाए।
है डर मुझे...
कि गगन-भेदती इन दीवारों में,
बगिया कोई ठूंठ ना जाए ,
दिल में पड़े कीवाड़ों से,
माता मही सब रूठ ना जाएँ ।
है डर मुझे...
कि निर्बल सिसकती उन आंखों में,
उम्मीद का बाँध टूट ना जाए ,
दारूण वेदना की सलाखों में,
उघरता आक्रोश कहीं फूंट ना जाए।
है डर मुझे...
कि मनुष्य की कथित रवानी से ,
विहग विहान सब ठहर न जाएँ,
हम-आप की कारस्तानी से,
विधि फिर कोई कहर ना ढाए।
है डर मुझे...
कि भीड़ के इस कोलाहल में,
कू-कू ,कल-कल दब ना जाए,
मुमूर्षों की इस महफिल को,
माहौल मरघट का ही फब ना जाए।
है डर मुझे...
कि सियारों की सियासत में,
सत्य सदा के लिए झुक ना जाए,
मनुष्य की भाव-भंगिमा से आहत,
कातर कलम मेरी रुक ना जाए...
कातर कलम कहीं ....................
हाँ ,है डर मुझे....
~ सौम्या
विहग विहान सब ठहर न जाएँ,
हम-आप की कारस्तानी से,
विधि फिर कोई कहर ना ढाए।
है डर मुझे...
कि भीड़ के इस कोलाहल में,
कू-कू ,कल-कल दब ना जाए,
मुमूर्षों की इस महफिल को,
माहौल मरघट का ही फब ना जाए।
है डर मुझे...
कि सियारों की सियासत में,
सत्य सदा के लिए झुक ना जाए,
मनुष्य की भाव-भंगिमा से आहत,
कातर कलम मेरी रुक ना जाए...
कातर कलम कहीं ....................
हाँ ,है डर मुझे....
~ सौम्या
again a gud piece...u r evolving as a poet, never slow up ur pace...after reading this i also felt'dar mujhe bhi hai'...
ReplyDeleteread dar kyu lagat hai dar ... tera dar nikal jaayega
ReplyDelete@alok...thnx
ReplyDelete@ ananya....this 'dar' is genuine man