इंसानों ने दिल से निकलकर उसे
दुकानों पर बिठा दिया है
जब तक दिल की बगिया में था
बागबानी करता था
कभी रूह की मिट्टी जोत देता
कभी मन की फसल सींच देता
अच्छे-अच्छे ख्यालों के फूलों से
दिल सजा रहता था हमेशा
संवेदना की खाद लाकर भी डाल देता था अक्सर
और ज़िन्दगी महकती रहती थी ।
तनख्वाह के तौर पर
प्यार के सिक्के ले जाता था।
तनख्वाह के तौर पर
प्यार के सिक्के ले जाता था।
अब तो दुकानों के दफ्तर पर
किसी साज-सज्जा के सामान जैसा
बिना ज्यादा जगह लिए
एक कोने में खड़ा रहता है बुत बनकर।
रोज़ सवेरे उसे दुकानदार
अगरबत्ती के धुएँ से डराकर
"फिंगर ऑन योर लिप्स"
की सजा सुनाकर
कारोबार में ब्यस्त हो जाते हैं।
और शाम होते ही उसके पास
खैरात की नोटें फेंक देते हैं।
और शाम होते ही उसके पास
खैरात की नोटें फेंक देते हैं।
गुज़र कर रहा है वो
बचत की हुई दौलत से !
(पर कब तक?)
बचत की हुई दौलत से !
(पर कब तक?)
एक दिन बातों-बातों में पूछ लिया मैंने
"इतना चढ़ावा आता है हर रोज़ तुम्हारे लिए
तरह-तरह की मिठाइयाँ,मेवे
सोने-चांदी के सिक्के
तुम तो इस्तेमाल करते नहीं
तुम तो इस्तेमाल करते नहीं
तो फिर जरा आकर..... इसी में से
घर के बाहर बैठे भूखे-भिखारियों की
कुछ मदद क्यूँ नहीं कर देते ?"
जवाब आया-
"रिश्वत के पैसों से
अच्छे काम नहीं किया करते! "
कोशिशें चल रही हैं उसे रोज़गार दिलाने की
अहसासों के अखबार में .... इश्तहार दिया है
दिमाग से भी बातचीत जारी है ..................!
कोशिशें चल रही हैं उसे रोज़गार दिलाने की
अहसासों के अखबार में .... इश्तहार दिया है
दिमाग से भी बातचीत जारी है ..................!
~Saumya
ReplyDelete"रिश्वत के पैसों से
अच्छे काम नहीं किया करते! "
कोशिशें चल रही हैं उसे रोज़गार दिलाने की
अहसासों के अखबार में .... इश्तहार दिया है
गहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
shukriya :)
Deleteये जो खुदा है न.... तुम से बहुत डरता होगा!
ReplyDeleteकभी बात हुयी तो जरुर पूछूँगा!
कुँवर जी,
haha...ye kya keh diya aapne...darti to main hun...:)
Deleteखुदा तो रिश्वत के पैसेसे अच्छे काम नहीं ही करेगा ...पर जो लोग रिश्वत लेते हैं वो खुदा को भी रिश्वत देने का प्रयास करते हैं ... गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteshukriya :)
Deleteखुदा बेरोजगार ....
ReplyDeleteकोशिशें चल रही हैं उसे रोज़गार दिलाने की
अहसासों के अखबार में .... इश्तहार दिया है
दिमाग से भी बातचीत जारी है ..................! तसल्ली मिली - खुदा भी लाईन में है साथ
hmm..thankyou rashmi ji :)
Deleteखुदा को रिश्वत आज कल करोड़ों में दिया जा रहा है काला धंधे की रक्षा के लिए .खुदा स्वीकार नहीं करता ,चुप रहता है . सुन्दर रचना
ReplyDeleteNyc one....sachi nd sudh rchna
ReplyDeletethankyou!!
Deleteबढ़िया है....
ReplyDeletewaaaaaaaah ..ise padhkar apni Finger on lips ho gyi hai..:):)
ReplyDeletegood going :)
hehe...thanks yaar :)
Deleteapna initial jaroor de diya karo creatoin par :)
Deletede diya...thanks again :)
Deleteladki form me h..... :)
ReplyDeleteजवाब आया-
"रिश्वत के पैसों से
अच्छे काम नहीं किया करते! "
wow!!!
kash! people undrstnd this. :D
thankyou hai :)
Deleteब्व्चारा खुदा ... उसके भक्तों ने ही उसे बेरोजगार बना डाला ... कलयुग बना के वो भी परेशान हो गया है ...
ReplyDeletethanks for the read!
Deleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट बधाई हो ।
ReplyDeleteआज से मैंने अपना चौथा ब्लॉग "समाचार न्यूज़" शुरू किया है,आपसे निवेदन है की एक बार इसपे अवश्य पधारे और हो सके तो इसे फ़ॉलो भी कर ले ,ताकि हम आपकी खबर रख सके । धन्यवाद ।
हमारा ब्लॉग पता है - smacharnews.blogspot.com
thanks for the read!
Deleteअच्छा लिखती हैं आप सौम्या ...पहली बार पढ़ा है ...अब अक्सर पढूंगी.
ReplyDeletethankyou saras ji...aap pehle bhi padh chuki hain....keep reading :)
Deleteवह अपने आनन्द में मगन है, हम ही दूर हो लिये हैं..
ReplyDeletetrue that...thanks for the read!!
Deleteजवाब आया-
ReplyDelete"रिश्वत के पैसों से
अच्छे काम नहीं किया करते! "
prabhu sahii shiksha hii denge ..
sarthak rachna...shubhkamnayen ..
shukriya!!
Deletehttp://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post.html
ReplyDeletethanks a tonne rashmi ji :)
Deleteबहुत बढिया ........जब ये काम पूरा हो जाए तो सबको सूचित कर दीजिएगा ...कि अब गरीबो को रोज़गार मिलने लगे हैं .....:)))
ReplyDeletebilkul...thanks for coming :)
Deleteबहुत सुंदर :
ReplyDeleteइंसानों ने दिल से निकलकर उसे
जब से दुकानों पर बिठाया है
उसी दिन से आदमी तरक्की
करता हुआ तो चला आया है
खुद माना कि चला गया
उसका अपना रोजगार
अब जान ले लो गे क्या उसकी
जब इतनो को उसने अपने से
रोजगार करना सिखलाया है ?
एक बड़ी और गहन सच्चाई को आपने कविता का विषय बनाया है।
ReplyDeleteआभार !
ReplyDeleteजवाब आया-
"रिश्वत के पैसों से
अच्छे काम नहीं किया करते! "
कोशिशें चल रही हैं उसे रोज़गार दिलाने की
अहसासों के अखबार में .... इश्तहार दिया है
दिमाग से भी बातचीत जारी है ..................!
बडी संजीदगी से सच को उकेरा है।
thanks a lot!
Delete