Tuesday, September 11, 2012

ये कैसी आज़ादी है!














ख्यालों को परवाज़ देने की
ये कैसी आज़ादी है
कि इनकी जंजीरों में रूह
क़ैद होकर रह जाती है
मैं अपने किरदार को
वक़्त की अदालत में
किसी बेबस मुवक्किल सा
कटघरे में खड़ा पाती हूँ
दिल और दिमाग में
बहस छिड़ जाती है
मेरा अक्स मेरे ही खिलाफ
गवाही देता है
और मन भटक जाता है
बचाव के सुबूत इक्हट्ठे करने को।

मुद्दा सही या गलत का नहीं है
जीत और हार का भी नहीं है
बात सिर्फ इतनी सी है 
की रूह क़ैद है    
ख्यालों को परवाज़ देने की
फिर ये कैसी आज़ादी है ...........!

~Saumya

27 comments:

  1. दिल और दिमाग में
    बहस छिड़ जाती है
    मेरा अक्स मेरे ही खिलाफ
    गवाही देता है
    और मन भटक जाता है
    बचाव के सुबूत इक्हट्ठे करने को।
    bahut sundar,aabhaar

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  2. सच है जब तक रूह आज़ाद नहीं .... ख्यालों की परवाज़ के कोई मायने नहीं ...
    मुक्ति तो रूओह को चाहिए ...

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  3. रूह की कसमसाहट ही शायद पन्नों पर शब्द बन कर बिखर जाती है....
    सुन्दर लिखा है सौम्या...बहुत गहराई से सोचा है...

    अनु
    (initials missing again :-))

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  4. बहुत गहनता से लिखा है ... सुंदर

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  5. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ...

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  6. सबको अपनी अभिव्यक्ति मिले, सबका सम्मान भी रहे।

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  7. अत्यंत ही संजीदा रचना. और शब्दों की अद्भुत कलाकारी! बधाइयाँ! :)

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  8. कटु सत्य को बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से उकेरा है..बहुत सुन्दर

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  9. Truly said saumya...sometimes we can not decide... :(

    come and join the group...would love to see you there... :)

    http://www.facebook.com/#!/groups/424971574219946/

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  10. रूह की कसमसाहट दिख रही है...

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  11. azadi...hmmm khud ko khud se nikakna mushkil h.....

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  12. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .

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  13. दिल और दिमाग की जंग अक्सर छिड जाती है जब आप का दिल कुछ और कहता है और दिमाग कुछ और । रूह कैद है फिर भी ख्यालों को परवाज़ देने की ये कैसी आजादी है ।

    सुंदर सोच भावपूर्ण लेखन ।

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  14. Good one yar ....khyaalo ki parvaaz hi rooh ki aazaadi kaa jariyaa hai ...kaid hone ko to har ek cheez kaid hai ..shayad hava bhi yhi mahsoos karti ho :)

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  15. बात सिर्फ इतनी सी है
    की रूह क़ैद है
    ख्यालों को परवाज़ देने की
    फिर ये कैसी आज़ादी है ...........!

    ....बहुत सुन्दर..मन को छू जाते भाव...

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Thankyou for reading...:)