Monday, July 19, 2010

तुम्ही तो हो!

















जैसे पंखुड़ियों के आँचल से लिपटी
कोई ओस की बूँद
जैसे दिल के तार छेड़ती
कोई मीठी सी धुन |
जैसे चेहरे पर खिली
मासूम सी हँसी
जैसे गोकुल के गलियारों में
कृष्णा की बंसी |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे बुझते दिए को बचाती
कोमल हथेलियाँ
जैसे  दूर किसी गाँव में
सरसों की फलियाँ |
जैसे गोधुली बेला में
वो पहला सितारा
जैसे झरनों में झिलमिलाती
कोई चमकती धारा |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे बिन मांगे पूरी हुई
कोई मनचाही मुराद
जैसे सब खोने के बाद भी
एक छोटी सी आस |
जैसे सुबह सुबह देखा
कोई सुन्दर सपना
जैसे परायों की भीड़ में
सिर्फ कोई अपना |
हाँ,तुम्ही तो हो!  

जैसे सांसों में घुलती 
हरसिंगार की महक
जैसे दिनों बाद आँगन में
पाखियों की चहक |
जैसे ठंडी ठंडी सी बयार 
और गुलाब के बगीचे 
जैसे नदियों का कल-कल
और सावन की झींसें |
हाँ,तुम्ही तो हो!  

जैसे छत पर बैठा 
परिंदों का जोड़ा 
जैसे घर की देहलीज़ पर 
तितलियों का डेरा |
जैसे आँखों से छलकते
ख़ुशी के आंसू 
जैसे मंद-मंद- मुस्कुराती 
बासंती ऋतू |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे चुनिन्दा शब्दों से गुथी 
कोई प्यारी-सी कविता 
जैसे रौशनी बिखेरती 
निश्छल सविता | 
जैसे खुदा का भेजा 
कोई अनमोल फरिश्ता 
खुशियाँ बाँटता जो 
आहिस्ता-आहिस्ता |
हाँ,तुम्ही तो हो! 

जैसे हाथों पर लिखी
भाग्य की लकीर
जैसे दुआएं देता
कोई अनजाना फकीर |
जैसे कड़ी धूप के बाद 
सुहावनी सी शाम
जैसे ज़िन्दगी  का ही
कोई दूसरा नाम |
हाँ,तुम्ही तो हो!
सिर्फ तुम्ही तो हो! 

(for my dearest siblings)



गोधुली बेला=when day and night meet just after the sunset,पाखियों=birds,सविता=sun

Wednesday, July 7, 2010

चूड़ियां

 

बाज़ार में कल हरी चूड़ियां देख 
कैसी चमक उठीं थीं मेरी 'आँखें'

किसी ने खो दीं थीं ,बनाते वक़्त 

~Saumya

Friday, July 2, 2010

'जात'


  











बाँध कर रखो ,मासूम मन को ,
और जला कर ख़ाक कर दो पतंगों के ढेर .

हवाएं भी अब रस्ता,'जात' पूछकर देती हैं.

                                                                                                        
~Saumya