इस बार जब सावन चुपके से
मेरी खिड़की पर दस्तक देगा
तो अँधेरे कमरों से निकल
मैं बावली सी दौड़कर
पहुँच जाउंगी छत पर |
भीगने दूँगी कुम्हलाई रूह को
बाहर से भीतर तक
भीतर से बाहर तक |
पथराई आँखों को
नम होने दूंगी
पराये अश्कों से ही सही |
इन्द्रधनुष से कुछ रंग उधार लेकर,
रंग लूँगी
रंग लूँगी
बेरंग हुए सपनों को |
थकी हुई साँसों को
फिर ताज़ा कर लूँगी
धरती की सौंधी महक से |
बरखा की रिमझिम को धीमे से गुनगुनाउंगी,
हवाओं की ओढनी ले,हौले से झूम जाउंगी,
और फिर खुशदिल होकर
जब दोनों हाथों को आगे फैलाउंगी
तो चंद बूँदें
मेरी हथेलियों पर आकर ठहर जायेंगी
और हर बार की तरह इस बार भी
कुछ नया लिखेंगी
कुछ अलग ....
इस बारी ,शायद कुछ अच्छा ! :)
~Saumya