मैं ना अभी-अभी
झगड़ कर आ रही हूँ..
खुदा से !
वैसे तो वो
कमाल का रंगसाज़ है
घर आता है मुझसे मिलने
तो अपने हाथ का बनाया
कुछ न कुछ लेकर
कभी एक कटोरी चाँदनी
कभी गाने वाली चिड़िया !
और मैं उसके घर जाती हूँ
तो माँ के बनाये
ढेर सारे लड्डू लेकर
(बौहत पसंद हैं उसे ! )
दोस्त है वो मेरा .........पक्का वाला
अपनी बड़ी सारी बातें........बताती हूँ उसे
मेरी फ़िक्र भी करता है...बौहत जियादा
मैं भी कोशिशें करती हूँ
उसकी खामोशियाँ पढने की....
उसका ख्याल रखने की..........
पता है
पतंग उड़ाने का सलीका
वो ही मुझे सिखाता है
और ये कल्पना के पर भी
उसी ने लाकर दिए थे
वो मेरे पेंसिल कलर अक्सर
मुझसे मांग कर ले जाता है
जब भी कोई नए फूल या तितलियाँ बनाने होते हैं....
आसमां के कैनवास पर ये जो रोज़ नयी-नयी
चित्रकारियाँ देखते हो ना
सब उसी की करामात है...........
वो मुझसे पहेलियाँ बुझाता है ...अजीब अजीब सी
मैं (बेवक़ूफ़)..........बता ही नहीं पाती!
बदले में मैं भी अपनी नज्में सुना सुनाकर
खूब तंग करती हूँ उसे
और जब हिसाब बराबर हो जाता है
दोनों ठहाके लगाकर ज़ोर-ज़ोर से हँसते हैं.......देर तलक !
हम दोनों साथ में बौहत सारे खेल खेलते हैं
वो मेरी गेंद,गुब्बारों से, मैं उसके चाँद-तारों से
कभी पकड़न-पकड़ाई, कभी छुपन-छुपाई ...........
अरे मैं तो भूल ही गयी
हाँ अभी-अभी उससे झगड़ के आ रही हूँ
पता है क्यूँ?
आज जब मैं ये
'ज़िन्दगी वाला खेल' खेल रही थी ना
उसने पिछली बार की तरह
इस बार भी हेरा-फेरी की ...........
और मेरी सारी गोटियाँ बिगाड़ दीं
भला कोई दोस्त ऐसा करता है क्या? नहीं ना ?
इसीलिए मैं -कट्टी कट्टी कट्टी बोलकर आ गयी !
गोटियों से छेड़खानी
मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती !
देखना शाम को आएगा
पूरी पल्टन के साथ
हमेशा की तरह मुझे मनाने के लिए
थैला भर बादल लेकर ...........
पर मैं भी जिद्दी हूँ......
इस बार नहीं मानूंगी....
और अपने पेंसिल कलर भी वापस ले लूँगी .............
हाँ नहीं तो !
गुस्सा हूँ मैं उससे ........बौहत जियादा !
(गन्दा !)
पर
माँ -पापा कहते हैं
सिर्फ एक खेल की वजह से
ऐसे नाराज़ नहीं होते
वो भी..... अपने सब से अच्छे दोस्त से !
उन्होंने पक्का वाला वादा किया है
कि खुदा को समझायेंगे.......मुझे ज्यादा सताया ना करे !
ठीक है......आने दो शाम को
पर आसानी से ना मानूंगी
पहले नखरे दिखाउंगी....थोड़ा चिढ़ाऊँगी
भैं -भैं कर रोऊँगी भी...... उसी के सामने
और फिर क्षितिज पार बाज़ार से अगर
'धरती वाला इत्र' लाकर देगा मुझे
तभी बात करुँगी .........
पर कहे दूंगी
की अगली बार से ऐसा किया
तो मैं कभी ना खेलूंगी
ये........... 'ज़िन्दगी वाला खेल' .............!
...................................................................
...................................................................
आज हम दोनों ने बारिश में
खूब मटरगश्तियाँ कीं
झूलों में झूला, बूंदों से खेला
मैंने भुट्टा खाया , उसने बर्फ का गोला
मैंने उस पर फूल डाले, उसने मेरे बाल बिगाड़े
और फिर जाते जाते
मैंने उसके लिए कागज़ की कश्तियाँ बनायीं
और उसने....हमेशा की तरह कैनवास पर खींच दीं
सातों की सातों रंगों की खड़ियाँ !
........................................................................
हाँ जी
मैंने खुदा से मिल्ली कर ली है
और अपने पेंसिल कलर भी वापस नहीं लिए हैं ! :-)
~Saumya
वो ही मुझे सिखाता है
और ये कल्पना के पर भी
उसी ने लाकर दिए थे
क्षितिज पार जो बाज़ार है ना.......वहीं से
वो मेरे पेंसिल कलर अक्सर
मुझसे मांग कर ले जाता है
जब भी कोई नए फूल या तितलियाँ बनाने होते हैं....
आसमां के कैनवास पर ये जो रोज़ नयी-नयी
चित्रकारियाँ देखते हो ना
सब उसी की करामात है...........
वो मुझसे पहेलियाँ बुझाता है ...अजीब अजीब सी
मैं (बेवक़ूफ़)..........बता ही नहीं पाती!
बदले में मैं भी अपनी नज्में सुना सुनाकर
खूब तंग करती हूँ उसे
और जब हिसाब बराबर हो जाता है
दोनों ठहाके लगाकर ज़ोर-ज़ोर से हँसते हैं.......देर तलक !
हम दोनों साथ में बौहत सारे खेल खेलते हैं
वो मेरी गेंद,गुब्बारों से, मैं उसके चाँद-तारों से
कभी पकड़न-पकड़ाई, कभी छुपन-छुपाई ...........
अरे मैं तो भूल ही गयी
हाँ अभी-अभी उससे झगड़ के आ रही हूँ
पता है क्यूँ?
आज जब मैं ये
'ज़िन्दगी वाला खेल' खेल रही थी ना
उसने पिछली बार की तरह
इस बार भी हेरा-फेरी की ...........
और मेरी सारी गोटियाँ बिगाड़ दीं
भला कोई दोस्त ऐसा करता है क्या? नहीं ना ?
इसीलिए मैं -कट्टी कट्टी कट्टी बोलकर आ गयी !
गोटियों से छेड़खानी
मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती !
देखना शाम को आएगा
पूरी पल्टन के साथ
हमेशा की तरह मुझे मनाने के लिए
थैला भर बादल लेकर ...........
पर मैं भी जिद्दी हूँ......
इस बार नहीं मानूंगी....
और अपने पेंसिल कलर भी वापस ले लूँगी .............
हाँ नहीं तो !
गुस्सा हूँ मैं उससे ........बौहत जियादा !
(गन्दा !)
पर
माँ -पापा कहते हैं
सिर्फ एक खेल की वजह से
ऐसे नाराज़ नहीं होते
वो भी..... अपने सब से अच्छे दोस्त से !
उन्होंने पक्का वाला वादा किया है
कि खुदा को समझायेंगे.......मुझे ज्यादा सताया ना करे !
ठीक है......आने दो शाम को
पर आसानी से ना मानूंगी
पहले नखरे दिखाउंगी....थोड़ा चिढ़ाऊँगी
भैं -भैं कर रोऊँगी भी...... उसी के सामने
और फिर क्षितिज पार बाज़ार से अगर
'धरती वाला इत्र' लाकर देगा मुझे
तभी बात करुँगी .........
पर कहे दूंगी
की अगली बार से ऐसा किया
तो मैं कभी ना खेलूंगी
ये........... 'ज़िन्दगी वाला खेल' .............!
...................................................................
...................................................................
आज हम दोनों ने बारिश में
खूब मटरगश्तियाँ कीं
झूलों में झूला, बूंदों से खेला
मैंने भुट्टा खाया , उसने बर्फ का गोला
मैंने उस पर फूल डाले, उसने मेरे बाल बिगाड़े
और फिर जाते जाते
मैंने उसके लिए कागज़ की कश्तियाँ बनायीं
और उसने....हमेशा की तरह कैनवास पर खींच दीं
सातों की सातों रंगों की खड़ियाँ !
........................................................................
हाँ जी
मैंने खुदा से मिल्ली कर ली है
और अपने पेंसिल कलर भी वापस नहीं लिए हैं ! :-)
~Saumya
सौम्या......सौम्या.......सौम्या.............
ReplyDeleteक्या कहूँ....दिल चाहा कि ये तकरार चलती रहे.....हम पढते रहें बस...तेरा इतराना..इठलाना...नखराली लड़की.......काला टीका लगा लेना..ये खुदा की नज़र न लगे तुझ पर...
ढेर सा प्यार...
अनु
(छितिज़ को क्षितिज कर लो)या इस टाइपिंग एरर को रहने दो डिठौने की तरह :-)
thankyou so much anu ji for all your love and encouragement ....means a lot when it comes from you ...:):)
Deletetyping error theek kar li hai :)
खुदा से ये मान मनौवल बहुत प्यारा लगा ...
ReplyDeletethankyou :)
Deleteअजब बनायी है यह दुनिया,
ReplyDeleteकरें शिकायत या मनमर्जी।
thankyou :)
Deleteबहुत ही प्यारी भी और गहरी भी ... शब्दों से खेलती रचना ...
ReplyDeleteयूं ही भोलापन बरकरार रहे और रचनाएं लाजवाब बनती रहें ...
thanks a lot :)
Deleteखुदा से मिल्ली कर ली है
ReplyDeleteऔर अपने पेंसिल कलर भी वापस नहीं लिए हैं ! :-)
तब तो आपने बहुत समझदारी का काम किया ... :)
ढेर सारी शुभकामनाएं हमेशा ये मिल्ली कायम रहे ...
Amen...thankyou so much :)
Deleteनटखट, नटखट से एहसास..
ReplyDeleteजी किया पढता रहूँ... बहुत ही प्यारी सी कविता है सौम्या...
thankyou :)
Deleteये जिंदगी वाला खेल........
ReplyDeleteइसमें झगड़े....
मिल्ली...
बस खेलते रहो जी......आभार अपनी दोस्त से मिलवाने के लिए,लड़-झगड़ आप रही थी इसे पढ़ कर मन में मुस्कान हमारे खिल रही है....
कुँवर जी,
thankyou so much :)
Deleteकभी खुदा दोस्त बन जाता है, तो कभी कोई दोस्त खुदा जितना प्यारा लगने लगता है...
ReplyDeletebilkul...thanks for the read :)
DeleteKasam se swaad aa gaya padhkar. Meri nazar se, probably THE best poetry tumhari ab tak! Generally lambi poetry kuch ek jagah content me kamzor pad jaati hai lekin yahan toh azooba ho gaya hai! Hats off!!
ReplyDeleteoho...itni acchi lag gayi....thanks a lot!! :)
Deletebahut chha likha h...maza a gyapadh k.
ReplyDeletethankyou :)
Deleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
shukriya!!
Deleteजब खुदा दोस्त हो तो फिर और दोस्त की क्या ज़रूरत..बहुत सुन्दर
ReplyDeletethankyou sir!
DeleteYou know Saumya, sometimes I wonder why I wander back here time and again when I am a sucker for literature. And when I read you, I know the answer, because wrapping deep thoughts in innocent childishness and play, it makes me smile inadvertently from the inside.
ReplyDeleteNo wonder you are a darling to many around you!
Cheers,
Blasphemous Aesthete
Now that is one of the best compliments one could get....glad you liked....thanks a tonne :)
Deletebahut sunder kalpna ki hai aapne.......
ReplyDeleteदोस्त है वो मेरा .........पक्का वाला
ReplyDeleteअपनी बड़ी सारी बातें........बताती हूँ उसे
मेरी फ़िक्र भी करता है...बौहत जियादा
मैं भी कोशिशें करती हूँ
उसकी खामोशियाँ पढने की....
उसका ख्याल रखने की..........
Mera bhi ek dost aisa hi hai, Isliye maine apni pehle post dosti ke naam likhi hai
Udaari Dosti Di.
thanks for dropping by!
Deleteख़ुदा सी दोस्ती मुबारक हो :)
ReplyDeleteshukriya!
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