लबे सड़क पर सजती है
गरबीली गरीबी की
एक कराहती हुई तस्वीर
अपनी किस्मत पर बिलखती
एक फूटी हुई तकदीर .........
छप्परों पर यहाँ सावन नहीं थिरकते ,
ना ही गुज़रती है वो बावली बयार ,
दिन का सूरज तो कभी था ही नहीं इनका ,
चांदनी ले जाती है इनसे अँधेरे उधार.
ज़िन्दगी यहाँ इम्तेहां नहीं लेती..
इम्तेहां ही ज़िन्दगी ले लेते हैं
पलकें कभी ख्वाब नहीं पिरोतीं
हकीकत छीन लेती है ये हक ......
दीख पड़ती है तो बडों की आँखों में तैरती बेबसी ,
छोटों की आँखों में सिसकते सवाल ...............
ठंडी पड़ी अंगीठी कि राख
सुलगा देती है ग़मों की आंच को,
उबाल देती है अश्कों के सैलाब को
कि आतें कुम्हला जाती होंगी...
पेट में भड़की आग से................
यहाँ तार सांसों के तब जुड़ते हैं ,
जब कूडों में से निवाले मिलते हैं
ये तिनका-तिनका मरते हैं,
तब ज़र्रा -ज़र्रा जीते हैं............
फिर भी तुम नज़रें फेर लेते हो....
आह! रूह छलनी हो जाती होगी
तुम्हारी उदासीनता दिल को
ये दर्द तो फिर भी सह लेते होंगे
अपनी किस्मत पर रो लेते होंगे
पर रूखी सूखी रोटी जब दिन बाद,
हलक के पार उतरती होगी,
हाय कुम्हलाई आतों को,
किस कदर न जाने चुभती होगी......
किस कदर न जाने चुभती होगी......
पर तंज़ ये नहीं है
कि ये तस्वीर नाखुश है
तंज़ ये है
कि ऐसी ही तस्वीर तुम
कागज़ पर उतारते हो
फिर कीमत चुकाकर
खुशकिस्मत है ये तस्वीर
जिसे सिरजनहार मिला ,
बदकिस्मत थी वो..........
जिसे कोई न पालनहार मिला......
कोई ना पालनहार मिला............
कोई ना ................................
~सौम्या