Wednesday, June 13, 2012

आँखों से थोड़ी बारिश हो..











सूखे हुए बेजान ख्वाब सारे
दफन हैं रूह की..... कमज़ोर बुनियाद पर 
......................................................
आँखों से थोड़ी बारिश  हो
तो दिल को यकीं आये
कि पल्कों की डाली पर
इक नया ख्वाब 
फिर 'हरा' होगा कभी.....................

~Saumya

Sunday, June 10, 2012

ये ज़िन्दगी क्यूँ .…फिर भी अच्छी लगती है ?




बात  बात  पर  देखो  ना …हर  पल   झगड़ती  है 
ये  ज़िन्दगी  क्यूँ .....…फिर  भी  अच्छी  लगती  है ?

कभी  बिना  गुनाह  किये  ही ..............…सज़ा  सुनाती  है 
  मासूम  किसी  गुड़िया को .......... बेवजह  रुलाती  है 
हर  साँस में  रूह ….......... कितनी  बार  बिलखती  है 
ये  ज़िन्दगी  क्यूँ  ........…फिर  भी  अच्छी  लगती  है ?

कभी  सपने  दिखाकर …............सपने  तोड़  देती  है 
  हवाओं  का  रुख   ही............  उल्टा  मोड़  देती  है 
उठ  कर  गिरना .…कभी  गिर  कर  उठना….लुढ़कती -संभलती है 
ये  ज़िन्दगी  क्यूँ  ……………..फिर  भी  अच्छी  लगती  है ?

जिसे  शिद्दत  से  चाहो ….........…वो  कहाँ  बक्श्ती है 
जो  दुआओं  में  मांगो  .........…वो  कहाँ  सुनती  है 
दिल  की  प्यारी  बातों को ......…ये  कहाँ  समझती  है 
ये  ज़िन्दगी  क्यूँ ……………. फिर  भी  अच्छी  लगती  है ?

हँसाती  है.......रुलाती  है......बनाती  है.......मिटाती  है
सिखाती  है.........दुलराती  है.......गिराती  है.........भगाती  है
हाथ  की  रेखाओं  पर  बस..............चलती  जाती  है.....

इस  कोने  कभी.........कभी  उस  कोने  सिसकती  है 
ये  ज़िन्दगी  क्यूँ...............फिर  भी  अच्छी  लगती  है? 

~Saumya

Wednesday, June 6, 2012

मानो चाँद ना हो...














कल चाँद फलक पर पूरा था
वैसा ही ....छैल -छबीला आवारा 
पहले तो बादलों के परदे में छिप -छिप कर
तंग करता रहा मुझे
फिर थक कर आकर बैठ गया बेहया
खिड़की पर मेरी !

सारी रात 
बिना पलक झपकाय 
एकटक........निहारती रही उसे मैं 
मानो चाँद ना हो
तुम्हारी ही कोई पुरानी
मुस्कुराती हुई....तस्वीर हो....... :)

Sunday, June 3, 2012

जो कहना चाहा था ..........














साँसों  के  उलझे  धागों  को 
थोड़ा  सुलझाया 
जज्बातों  के  समुंदर  को 
थोड़ा  टटोला 
एहसांसों पर  पड़ी 
धूल की  परत  भी  साफ़  की
बिखरे हुए  अल्फाजों को 
इक्हठा  किया 
थोड़ा  इधर …थोडा  उधर  से 
सूखी  कलम   में 
नयी  स्याही  भी  डाली 
और  एक   कोरा  कागज़  लेकर 
बैठ  गयी ……एकांत  में 
अकेले ……………तारों  से  मुंह  मोड़के………………
घण्टों  बाद  एहसास  हुआ  ……
आँसू की  एक  बूँद  छलक  कर 
पन्ने  पर  कहीं  फ़ैल  गयी  थी 
और  जो  कहना  चाहा था 
वो  हमेशा  की  तरह ……..…दिल  में  ही  रह  गया  !

~Saumya