Thursday, July 19, 2012

और मिल गयी मैं मुझको !















पता नहीं कब कहाँ मैं
मुझसे बिछड़ गयी हूँ
नहीं...किसी भीड़ में नहीं थी
फिर भी खो गयी हूँ !

पहले ढूँढा खुद को मैंने

उस तारीफों से भरे संदूक में
जो प्यार से कभी मिली थीं मुझे ....
बोहत संभालकर रखी थी मैंने 
सारी की सारी ....यादों के लॉकर में 
कुछ झूठी थीं...कुछ सच्ची थीं
छोटी-छोटी ही सही... पर अच्छी थीं
मीठी -मीठी उन सौगातों में 
सोचा शायद थोड़ी सी मिल जाऊं खुद को 
ठीक से ढूँढा मैंने...
पर नहीं मिली मैं मुझको..................

फिर सोचा खोजूं खुद को

कविताओं में...नज्मों में
जो टांक दी थी मैंने....कागज़ के सीने में  ....
शायद किसी शब्दों की इमारत तले
जान बूझकर....... दब गयी हूँ ?
या फिर भूल आई  हूँ खुद को
गलती से ......किसी अधूरी ग़ज़ल में ?
या शायद बाँध दिया हो रूह को अपनी 
किसी रूपक में .....बेवजह ही ...बावली हूँ ना !
बोहत  ढूँढा मैंने खुद को 
लफ्ज़ दर लफ्ज़ ...खंगोल डाला 
ज़ज्बातों के समुंदर को 
पर नहीं मिली मैं मुझको............ 

मेरी परछाईं भी तो लापता थी 

रपट दर्ज थी उसकी भी दिल-ओ-दिमाग में 
वर्ना उसी से पूछ लेती .....
फिर ख्याल आया 
किसी की आँखों में ढूँढूं 
शायद वहीँ महफूज़ होंगी 
पर उतनी पास..... कोई कहाँ था 
परेशां होकर ......दौड़कर फिर गयी 
आईने के पास....सोचा
वहां तो ज़रूर पाउंगी खुद को
पर ये क्या …आईना भी खाली था ……
मेरे भीतर की तरह ...इकदम खोखला .... 
और फिर नहीं मिली मैं मुझको ......... 

कबसे....  ढूंढ रही हूँ खुद को

हाथ की हथेलियों में 
ज़िन्दगी की पहेलियों में  
बीते हुए कल के अंधेरों में  
आने वाले कल के कोहरों में  
सब से तो पूछ लिया 
सब जगह तो देख लिया …. 
नहीं मिल रही ……मैं मुझको ………… 

किसी ने बताया था मुझे … 

मेरा पुराना पता ……
इक छोटे से सपने के
बड़े से घरौंदे में रहती थी मैं 
ख़ुशी -ख़ुशी …….तितलियों जैसी .. 
अब वहां कोई दूसरा किरायेदार रहता है …. 

घर लौटी जब थक हारकर 

रोई खूब मैं फूंट-फूंट कर …
बोहत देर बाद ....अचानक किसी ने आकर
(खुदा ही होगा ) 
आँखों पर कोई इक चश्मा पहनाया 
पलकों पर जमी ....धूल हटाया
और दिखाया …………. 
कि किसी कोने में जब 
बिखरी-बिखरी सी पड़ी थी मैं 
तो माँ-पापा ने कैसे 
टुकड़े -टुकड़े तिनका -तिनका जोड़कर मुझे
अपनी दुआओं में .......सहेज कर......... रख लिया था ..... 

पापा के अक्स की छाँव तले 

माँ के आँचल में लिपटी 
कितने सुकून से तो थी मैं
दुनिया की सबसे सलामत जगह पर ...
ना आँखों में डर था,ना दिल में बेचैनी  
लगा की कहीं खोयी ही नहीं थी मैं कभी
हमेशा से...... वहीँ तो थी..... 
माँ-पापा की दुआओं में............महफूज़! 

~Saumya

23 comments:

  1. ड़े से घरौंदे में रहती थी मैं
    ख़ुशी -ख़ुशी …….तितलियों जैसी ..
    खैर....अब वहां कोई दूसरा किरायेदार रहता है ….
    बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

    ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई.....शब्द शब्द दिल में उतर गयी

    @ संजय भास्कर

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  2. aha..Abhi charam par hai tumhari creativity! bahot achhe! ye talaash badi dilchasp thi ! halaki mujhe Happy ending ki ummid kam thi! halaki Badhiya ant kiya! aur

    फिर सोचा खोजूं खुद को
    कविताओं में...नज्मों में
    जो टांक दी थी मैंने....कागज़ के सीने पर ....
    लगा ,शायद किसी शब्दों की इमारत तले
    जान बूझकर....... दब गयी हूँ ?
    या फिर भूल आई हूँ खुद को
    गलती से ......किसी अधूरी ग़ज़ल में ?
    या शायद बाँध दिया हो रूह को अपनी
    किसी रूपक में .....बेवजह ही ...बावली हूँ ना
    बोहत ढूँढा मैंने खुद को
    लफ्ज़ दर लफ्ज़ ...खंगोल डाला
    ज़ज्बातों के समुंदर को
    पर नहीं मिली मैं मुझको............

    ye pantiyaan lajawwab lagi! :)

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  3. इस ढूँढने में मैं भी फिर उठ गई - एक बार और ढूंढ लूँ खुद को .
    इस खोज के हर कदम मेरी आँखों से बहे हैं - हमेशा महफूज़ रहो

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  4. http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2012/07/blog-post_20.html

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  5. बहुत सुन्दर सौम्य.....
    बस...पढ़ती चली गयी तुम्हारी कविता...........
    वाह!!!

    अनु

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  6. बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी रचना है सौम्य..
    बहुत सुन्दर:-)

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  7. @Sanjay ji: thanks a lot :)

    @Amit: thank you so much...velli hun...to bas aajkal thoda bauhat :) :)

    @Rashmi ji: thanks a tonne for the wonderful comment..glad :)

    @Shekhar ji: thanks :)

    @Anu ji: thanks a lot...keep reading :)

    @Reena ji: thank you :)

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  8. जाके कहाँ मैं रपट लिखाऊँ....
    खूबसूरत!
    आशीष
    --
    इन लव विद.......डैथ!!!

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  9. @Ashish ji: thankyou...visit again :)

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  10. प्रवाहयुक्‍त सशक्‍त लेखन ... भावमय करती हुई उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ... बधाई स्‍वीकारें हमेशा आपका लेखन यूँ ही रहे मन को छूता हुआ :)

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  11. @Sada ji: thanks a lot...keep reading...utsah-vardhan ke liye aur bhi shukriya :)

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  12. लाज़वाब! बहुत भावपूर्ण और प्रभावी अभिव्यक्ति..

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  13. चलिए आपकी तालाश ख़त्म तो हुई
    और आपने अपने आप को खोज लिया जहाँ आप कई सालों से महफूज थी
    माँ - पापा की आँखों में
    बहुत सुंदर रचना !!

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  14. @Shivnath ji: thankyou so much...padhte rahiye :)

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  15. खुद को पाना है तो खुद ही अपाने अंदर झांकना होता है ... दूसरों की बातों में खुद की नहीं ... दूसरी की नज़रों की तलाश रहती है ..

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  16. @Digamber ji: sahi kaha aapne...par yahan taalash thode dooje kism ki thi...jo 'doosron ki baaton' mein nahi 'ma-papa ki duaaon' mein jaa ke khatm hui...padhne ke liye shukriya :)

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  17. love ur writing...
    like this poem...specially these lines...
    बिखरी-बिखरी सी पड़ी थी मैं
    तो माँ-पापा ने कैसे
    टुकड़े -टुकड़े तिनका -तिनका जोड़कर मुझे
    अपनी दुआओं में .......सहेज कर......... रख लिया था

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  18. @Smriti: thanks a lot...keep reading :)

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  19. पापा के अक्स की छाँव तले
    माँ के आँचल में लिपटी
    कितने सुकून से तो थी मैं
    दुनिया की सबसे सलामत जगह पर ...
    ना आँखों में डर था,ना दिल में बेचैनी
    लगा की कहीं खोयी ही नहीं थी मैं कभी
    हमेशा से...... वहीँ तो थी.....
    माँ-पापा की दुआओं में............महफूज़! bahut khubsurat bathai.maa bap ke aashish tale bahi mahfuz hai. sunder sabdavali me sajane ke liye badhai. mere blog"mere vichar meri anubhuti" me aapka swagat hai. Link-http://kpk-vichar.blogspot.in

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Thankyou for reading...:)