Tuesday, October 12, 2010

टूटे ख़्वाब....


हर शाम छत पर
जब अश्कों की आँच में
टूटे ख़्वाबों को
जलाती है वो 
तो धधकने लगती है
ख्वाहिशों की लौ!

सिहरती हवाओं का इक हुजूम
उड़ा ले जाता है संग
चंद अंगारों को
और फेंक देता है
किसी आसमां के सीने पर!

बच्चे खुश होते हैं
उन 'तारों' को देखकर
मुसाफिरों को मंजिल मिल जाती है
स्याह 'रात' जगमगा उठती है
और लोग
उन दम तोड़ते सुलगते अरमानों से भी
मन्नते मांग लेते हैं !

किसी को किसी के अंधियारों से
क्या फर्क पड़ता है ..............!!

~Saumya