Wednesday, June 23, 2010

इस बार जब सावन...

 


















इस बार जब सावन चुपके से
मेरी खिड़की पर दस्तक देगा
तो  अँधेरे कमरों से निकल
मैं बावली सी दौड़कर
पहुँच जाउंगी छत पर |

भीगने दूँगी कुम्हलाई रूह को
बाहर से भीतर तक
भीतर से बाहर तक |

पथराई आँखों को
नम होने दूंगी
पराये अश्कों से ही सही |

इन्द्रधनुष से कुछ रंग उधार लेकर,
रंग लूँगी 
बेरंग हुए सपनों को |

थकी हुई साँसों को
फिर ताज़ा कर लूँगी
धरती की सौंधी  महक से |

बरखा की रिमझिम को धीमे से गुनगुनाउंगी,
हवाओं की ओढनी ले,हौले से झूम जाउंगी,
और फिर खुशदिल होकर
जब दोनों हाथों को आगे फैलाउंगी
तो चंद बूँदें
मेरी हथेलियों पर आकर ठहर जायेंगी
और हर बार की तरह इस बार भी
कुछ नया लिखेंगी
कुछ अलग  ....
इस बारी ,शायद कुछ अच्छा ! :)

~Saumya

Sunday, June 20, 2010

बारिश होने को है...














वादियाँ सजदे में हैं ,
आफताब परदे में है,
पंछियों में हलचल सी है,
फिजायें भी मलमल सी हैं.
कि दूर बादलों के गाँव से
कोई आने को है |

रिमझिम-रिमझिम,
कुछ मनचली बूँदें ,
रिमझिम-रिमझिम,
कुछ सपनों की फुहारें,
कि गुलशन-ए -ज़िन्दगी 
फिर मुस्कुराने को है ...

दूर बादलों के गाँव से
कोई आने को है ...

~Saumya.

Monday, June 7, 2010

ज़िन्दगी...


















'दिल' और 'दिमाग' में उलझनें बढ़ गयीं थीं,
साँसों की डोर में भी गिरहें पड़ गयीं थीं
आज बैठकर सुलझाया है सब कुछ
ऐ ज़िन्दगी तू हमें रास आने लगी है!

माथे पर कुछ सिलवटें बेहद फिजूल थीं,
पलकों की छाँव में सिर्फ यादों की धूल थी 
आज बैठकर मिटाया है सब कुछ
ऐ ज़िन्दगी तू हमें लुभाने लगी है!

हाथ की लकीरों पर वक़्त की खरोंचे थीं,
लबों पर मुसकुराहट भी ज़ख्म सरीखी थीं 
आज 'उम्मीद' का मरहम लगाया है सब पर
ऐ ज़िन्दगी तू हमें अपनाने लगी है!

ऐ ज़िन्दगी तू हमें रास आने लगी है!

~Saumya

गिरहें=knot,खरोंचे=scratches


Friday, June 4, 2010

गम



तारों संग कल गुफ्तगू में हमने
कुछ एक गम जाहिर किये थे

सुना है पूरी रात बारिश हुई है| 

~Saumya 


गुफ्तगू=conversation,जाहिर=express